فَلَا تَهِنُوْا وَتَدْعُوْٓا اِلَى السَّلْمِۖ وَاَنْتُمُ الْاَعْلَوْنَۗ وَاللّٰهُ مَعَكُمْ وَلَنْ يَّتِرَكُمْ اَعْمَالَكُمْ ( محمد: ٣٥ )
So (do) not
فَلَا
पस ना
weaken
تَهِنُوا۟
तुम सुस्ती करो
and call
وَتَدْعُوٓا۟
और (ना) तुम बुलाओ
for
إِلَى
तरफ़ सुलह के
peace
ٱلسَّلْمِ
तरफ़ सुलह के
while you
وَأَنتُمُ
और तुम ही
(are) superior
ٱلْأَعْلَوْنَ
ग़ालिब रहने वाले हो
and Allah
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
(is) with you
مَعَكُمْ
साथ है तुम्हारे
and never
وَلَن
और हरगिज़ ना
will deprive you
يَتِرَكُمْ
वो कम करेगा तुमसे
(of) your deeds
أَعْمَٰلَكُمْ
आमाल तुम्हारे
Fala tahinoo watad'oo ila alssalmi waantumu ala'lawna waAllahu ma'akum walan yatirakum a'malakum (Muḥammad 47:35)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अतः ऐसा न हो कि तुम हिम्मत हार जाओ और सुलह का निमंत्रण देने लगो, जबकि तुम ही प्रभावी हो। अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह तुम्हारे कर्मों (के फल) में तुम्हें कदापि हानि न पहुँचाएगा
English Sahih:
So do not weaken and call for peace while you are superior; and Allah is with you and will never deprive you of [the reward of] your deeds. ([47] Muhammad : 35)