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۞ قَالَتِ الْاَعْرَابُ اٰمَنَّا ۗ قُلْ لَّمْ تُؤْمِنُوْا وَلٰكِنْ قُوْلُوْٓا اَسْلَمْنَا وَلَمَّا يَدْخُلِ الْاِيْمَانُ فِيْ قُلُوْبِكُمْ ۗوَاِنْ تُطِيْعُوا اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ لَا يَلِتْكُمْ مِّنْ اَعْمَالِكُمْ شَيْـًٔا ۗاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ   ( الحجرات: ١٤ )

Say
قَالَتِ
कहा
the Bedouins
ٱلْأَعْرَابُ
देहातियों / बदवियों ने
"We believe"
ءَامَنَّاۖ
ईमान लाए हम
Say
قُل
कह दीजिए
"Not
لَّمْ
नहीं
you believe;
تُؤْمِنُوا۟
तुम ईमान लाए
but
وَلَٰكِن
और लेकिन
say
قُولُوٓا۟
कहो
"We have submitted"
أَسْلَمْنَا
इस्लाम लाए हम
and has not yet
وَلَمَّا
और अभी तक नहीं
entered
يَدْخُلِ
दाख़िल हुआ
the faith
ٱلْإِيمَٰنُ
ईमान
in
فِى
तुम्हारे दिलों में
your hearts
قُلُوبِكُمْۖ
तुम्हारे दिलों में
But if
وَإِن
और अगर
you obey
تُطِيعُوا۟
तुम इताअत करोगे
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह की
and His Messenger
وَرَسُولَهُۥ
और उसके रसूल की
not
لَا
नहीं वो कमी करेगा तुमसे
He will deprive you
يَلِتْكُم
नहीं वो कमी करेगा तुमसे
of
مِّنْ
तुम्हारे आमाल में से
your deeds
أَعْمَٰلِكُمْ
तुम्हारे आमाल में से
anything
شَيْـًٔاۚ
कुछ भी
Indeed
إِنَّ
बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) Oft-Forgiving
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
Most Merciful
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है

Qalati ala'rabu amanna qul lam tuminoo walakin qooloo aslamna walamma yadkhuli aleemanu fee quloobikum wain tutee'oo Allaha warasoolahu la yalitkum min a'malikum shayan inna Allaha ghafoorun raheemun (al-Ḥujurāt 49:14)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

बद्‌दुओं ने कहा कि, 'हम ईमान लाए।' कह दो, 'तुम ईमान नहीं लाए। किन्तु यूँ कहो, 'हम तो आज्ञाकारी हुए' ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ। यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हारे कर्मों में से तुम्हारे लिए कुछ कम न करेगा। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।'

English Sahih:

The bedouins say, "We have believed." Say, "You have not [yet] believed; but say [instead], 'We have submitted,' for faith has not yet entered your hearts. And if you obey Allah and His Messenger, He will not deprive you from your deeds of anything. Indeed, Allah is Forgiving and Merciful." ([49] Al-Hujurat : 14)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

अरब के देहाती कहते हैं कि हम ईमान लाए (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम ईमान नहीं लाए बल्कि (यूँ) कह दो कि इस्लाम लाए हालॉकि ईमान का अभी तक तुम्हारे दिल में गुज़र हुआ ही नहीं और अगर तुम ख़ुदा की और उसके रसूल की फरमाबरदारी करोगे तो ख़ुदा तुम्हारे आमाल में से कुछ कम नहीं करेगा - बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है