سَمّٰعُوْنَ لِلْكَذِبِ اَكّٰلُوْنَ لِلسُّحْتِۗ فَاِنْ جَاۤءُوْكَ فَاحْكُمْ بَيْنَهُمْ اَوْ اَعْرِضْ عَنْهُمْ ۚوَاِنْ تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَنْ يَّضُرُّوْكَ شَيْـًٔا ۗ وَاِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُمْ بَيْنَهُمْ بِالْقِسْطِۗ اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِيْنَ ( المائدة: ٤٢ )
Samma'oona lilkathibi akkaloona lilssuhti fain jaooka faohkum baynahum aw a'rid 'anhum wain tu'rid 'anhum falan yadurrooka shayan wain hakamta faohkum baynahum bialqisti inna Allaha yuhibbu almuqsiteena (al-Māʾidah 5:42)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे झूठ के लिए कान लगाते रहनेवाले और बड़े हराम खानेवाले है। अतः यदि वे तुम्हारे पास आएँ, तो या तुम उनके बीच फ़ैसला कर दो या उन्हें टाल जाओ। यदि तुम उन्हें टाल गए तो वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परन्तु यदि फ़ैसला करो तो उनके बीच इनसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों से प्रेम करता है
English Sahih:
[They are] avid listeners to falsehood, devourers of [what is] unlawful. So if they come to you, [O Muhammad], judge between them or turn away from them. And if you turn away from them – never will they harm you at all. And if you judge, judge between them with justice. Indeed, Allah loves those who act justly. ([5] Al-Ma'idah : 42)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ये (कम्बख्त) झूठी बातों को बड़े शौक़ से सुनने वाले और बड़े ही हरामख़ोर हैं तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हारे पास (कोई मामला लेकर) आए तो तुमको इख्तेयार है ख्वाह उनके दरमियान फैसला कर दो या उनसे किनाराकशी करो और अगर तुम किनाराकश रहोगे तो (कुछ ख्याल न करो) ये लोग तुम्हारा हरगिज़ कुछ बिगाड़ नहीं सकते और अगर उनमें फैसला करो तो इन्साफ़ से फैसला करो क्योंकि ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है