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يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِذَا نَاجَيْتُمُ الرَّسُوْلَ فَقَدِّمُوْا بَيْنَ يَدَيْ نَجْوٰىكُمْ صَدَقَةً ۗذٰلِكَ خَيْرٌ لَّكُمْ وَاَطْهَرُۗ فَاِنْ لَّمْ تَجِدُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ   ( المجادلة: ١٢ )

O you who believe!
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगों जो
O you who believe!
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगों जो
O you who believe!
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए हो
When
إِذَا
जब
you privately consult
نَٰجَيْتُمُ
सरगोशी करो तुम
the Messenger
ٱلرَّسُولَ
रसूल से
then offer
فَقَدِّمُوا۟
तो पेश करो
before
بَيْنَ
पहले
before
يَدَىْ
पहले
your private consultation
نَجْوَىٰكُمْ
उपने सरगोशी के
charity
صَدَقَةًۚ
सदक़ा
That
ذَٰلِكَ
ये
(is) better
خَيْرٌ
बेहतर है
for you
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
and purer
وَأَطْهَرُۚ
और ज़्यादा पाकीज़ा
But if
فَإِن
फिर अगर
not
لَّمْ
ना
you find
تَجِدُوا۟
तुम पाओ
then indeed
فَإِنَّ
तो बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) Oft-Forgiving
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
Most Merciful
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है

Ya ayyuha allatheena amanoo itha najaytumu alrrasoola faqaddimoo bayna yaday najwakum sadaqatan thalika khayrun lakum waatharu fain lam tajidoo fainna Allaha ghafoorun raheemun (al-Mujādilah 58:12)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम रसूल से अकेले में बात करो तो अपनी गुप्त वार्ता से पहले सदक़ा दो। यह तुम्हारे लिए अच्छा और अधिक पवित्र है। फिर यदि तुम अपने को इसमें असमर्थ पाओ, तो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है

English Sahih:

O you who have believed, when you [wish to] privately consult the Messenger, present before your consultation a charity. That is better for you and purer. But if you find not [the means] – then indeed, Allah is Forgiving and Merciful. ([58] Al-Mujadila : 12)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

ऐ ईमानदारों जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो यही तुम्हारे वास्ते बेहतर और पाकीज़ा बात है पस अगर तुमको इसका मुक़दूर न हो तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है