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وَالَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَا وَلِقَاۤءِ الْاٰخِرَةِ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْۗ هَلْ يُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ࣖ  ( الأعراف: ١٤٧ )

And those who
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
denied
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
Our Signs
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी निशानियों को
and (the) meeting
وَلِقَآءِ
और मुलाक़ात को
(of) the Hereafter -
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत की
worthless
حَبِطَتْ
ज़ाया हो गए
(are) their deeds
أَعْمَٰلُهُمْۚ
आमाल उनके
Will
هَلْ
नहीं
they be recompensed
يُجْزَوْنَ
वो बदला दिए जाऐंगे
except
إِلَّا
मगर
(for) what
مَا
जो
they used to
كَانُوا۟
थे वो
do?
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते

Waallatheena kaththaboo biayatina waliqai alakhirati habitat a'maluhum hal yujzawna illa ma kanoo ya'maloona (al-ʾAʿrāf 7:147)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

जिन लोगों ने हमारी आयतों को और आख़िरत के मिलन को झूठा जाना, उनका तो सारा किया-धरा उनकी जान को लागू हुआ। जो कुछ वे करते रहे क्या उसके सिवा वे किसी और चीज़ का बदला पाएँगे?

English Sahih:

Those who denied Our signs and the meeting of the Hereafter – their deeds have become worthless. Are they recompensed except for what they used to do? ([7] Al-A'raf : 147)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को और आख़िरत की हुज़ूरी को झूठलाया उनका सब किया कराया अकारत हो गया, उनको बस उन्हीं आमाल की जज़ा या सज़ा दी जाएगी जो वह करते थे