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وَاذْكُرْ رَّبَّكَ فِيْ نَفْسِكَ تَضَرُّعًا وَّخِيْفَةً وَّدُوْنَ الْجَهْرِ مِنَ الْقَوْلِ بِالْغُدُوِّ وَالْاٰصَالِ وَلَا تَكُنْ مِّنَ الْغٰفِلِيْنَ  ( الأعراف: ٢٠٥ )

And remember
وَٱذْكُر
और ज़िक्र कीजिए
your Lord
رَّبَّكَ
अपने रब का
in
فِى
अपने दिल में
yourself
نَفْسِكَ
अपने दिल में
humbly
تَضَرُّعًا
आजिज़ी
and (in) fear
وَخِيفَةً
और ख़ौफ़ से
and without
وَدُونَ
और बग़ैर
the loudness
ٱلْجَهْرِ
बुलन्द
of
مِنَ
आवाज़ के
[the] words
ٱلْقَوْلِ
आवाज़ के
in the mornings
بِٱلْغُدُوِّ
सुबह के वक़्त
and (in) the evenings
وَٱلْءَاصَالِ
और शाम के वक़्त
And (do) not
وَلَا
और ना
be
تَكُن
हों आप
among
مِّنَ
ग़ाफ़िलों में से
the heedless
ٱلْغَٰفِلِينَ
ग़ाफ़िलों में से

Waothkur rabbaka fee nafsika tadarru'an wakheefatan wadoona aljahri mina alqawli bialghuduwwi waalasali wala takun mina alghafileena (al-ʾAʿrāf 7:205)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

अपने रब को अपने मन में प्रातः और संध्या के समयों में विनम्रतापूर्वक, डरते हुए और हल्की आवाज़ के साथ याद किया करो। और उन लोगों में से न हो जाओ जो ग़फ़लत में पड़े हुए है

English Sahih:

And remember your Lord within yourself in humility and in fear without being apparent in speech – in the mornings and the evenings. And do not be among the heedless. ([7] Al-A'raf : 205)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और अपने परवरदिगार को अपने जी ही में गिड़गिड़ा के और डर के और बहुत चीख़ के नहीं (धीमी) आवाज़ से सुबह व शाम याद किया करो और (उसकी याद से) ग़ाफिल बिल्कुल न हो जाओ