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وَيُطْعِمُوْنَ الطَّعَامَ عَلٰى حُبِّهٖ مِسْكِيْنًا وَّيَتِيْمًا وَّاَسِيْرًا   ( الانسان: ٨ )

And they feed
وَيُطْعِمُونَ
और वो खिलाते हैं
the food
ٱلطَّعَامَ
खाना
in spite of
عَلَىٰ
उसकी मुहब्बत में
love (for) it
حُبِّهِۦ
उसकी मुहब्बत में
(to the) needy
مِسْكِينًا
मिसकीन
and (the) orphan
وَيَتِيمًا
और यतीम
and (the) captive
وَأَسِيرًا
और क़ैदी को

Wayut'imona altta'ama 'ala hubbihi miskeenan wayateeman waaseeran (al-ʾInsān 76:8)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते है,

English Sahih:

And they give food in spite of love for it to the needy, the orphan, and the captive, ([76] Al-Insan : 8)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और उसकी मोहब्बत में मोहताज और यतीम और असीर को खाना खिलाते हैं