۞ وَمَا كَانَ الْمُؤْمِنُوْنَ لِيَنْفِرُوْا كَاۤفَّةًۗ فَلَوْلَا نَفَرَ مِنْ كُلِّ فِرْقَةٍ مِّنْهُمْ طَاۤىِٕفَةٌ لِّيَتَفَقَّهُوْا فِى الدِّيْنِ وَلِيُنْذِرُوْا قَوْمَهُمْ اِذَا رَجَعُوْٓا اِلَيْهِمْ لَعَلَّهُمْ يَحْذَرُوْنَ ࣖ ( التوبة: ١٢٢ )
Wama kana almuminoona liyanfiroo kaffatan falawla nafara min kulli firqatin minhum taifatun liyatafaqqahoo fee alddeeni waliyunthiroo qawmahum itha raja'oo ilayhim la'allahum yahtharoona (at-Tawbah 9:122)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यह तो नहीं कि ईमानवाले सब के सब निकल खड़े हों, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि उनके हर गिरोह में से कुछ लोग निकलते, ताकि वे धर्म में समझ प्राप्ति करते और ताकि वे अपने लोगों को सचेत करते, जब वे उनकी ओर लौटते, ताकि वे (बुरे कर्मों से) बचते?
English Sahih:
And it is not for the believers to go forth [to battle] all at once. For there should separate from every division of them a group [remaining] to obtain understanding in the religion and warn [i.e., advise] their people when they return to them that they might be cautious. ([9] At-Tawbah : 122)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आख़िरत से) डराए ताकि ये लोग डरें