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يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوْٓا اٰبَاۤءَكُمْ وَاِخْوَانَكُمْ اَوْلِيَاۤءَ اِنِ اسْتَحَبُّوا الْكُفْرَ عَلَى الْاِيْمَانِۗ وَمَنْ يَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ   ( التوبة: ٢٣ )

O you
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
who
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
believe!
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
(Do) not
لَا
ना तुम बनाओ
take
تَتَّخِذُوٓا۟
ना तुम बनाओ
your fathers
ءَابَآءَكُمْ
अपने आबा ओ अजदाद को
and your brothers
وَإِخْوَٰنَكُمْ
और अपने भाईयों को
(as) allies
أَوْلِيَآءَ
दोस्त
if
إِنِ
अगर
they prefer
ٱسْتَحَبُّوا۟
वो तरजीह दें
[the] disbelief
ٱلْكُفْرَ
कुफ़्र को
over
عَلَى
ईमान पर
[the] belief
ٱلْإِيمَٰنِۚ
ईमान पर
And whoever
وَمَن
और जो कोई
takes them as allies
يَتَوَلَّهُم
दोस्त रखेगा उन्हें
among you
مِّنكُمْ
तुम में से
then those
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
[they]
هُمُ
वो
(are) the wrongdoers
ٱلظَّٰلِمُونَ
जो ज़ालिम हैं

Ya ayyuha allatheena amanoo la tattakhithoo abaakum waikhwanakum awliyaa ini istahabboo alkufra 'ala aleemani waman yatawallahum minkum faolaika humu alththalimoona (at-Tawbah 9:23)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे

English Sahih:

O you who have believed, do not take your fathers or your brothers as allies if they have preferred disbelief over belief. And whoever does so among you – then it is those who are the wrongdoers. ([9] At-Tawbah : 23)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ़्र को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) ख़ैर ख्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे उलफ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है