قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَاۤؤُكُمْ وَاَبْنَاۤؤُكُمْ وَاِخْوَانُكُمْ وَاَزْوَاجُكُمْ وَعَشِيْرَتُكُمْ وَاَمْوَالُ ِۨاقْتَرَفْتُمُوْهَا وَتِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَآ اَحَبَّ اِلَيْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَجِهَادٍ فِيْ سَبِيْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰى يَأْتِيَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖۗ وَاللّٰهُ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْفٰسِقِيْنَ ࣖ ( التوبة: ٢٤ )
Qul in kana abaokum waabnaokum waikhwanukum waazwajukum wa'asheeratukum waamwalun iqtaraftumooha watijaratun takhshawna kasadaha wamasakinu tardawnaha ahabba ilaykum mina Allahi warasoolihi wajihadin fee sabeelihi fatarabbasoo hatta yatiya Allahu biamrihi waAllahu la yahdee alqawma alfasiqeena (at-Tawbah 9:24)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
कह दो, 'यदि तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी पत्नि यों और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और माल, जो तुमने कमाए है और कारोबार जिसके मन्दा पड़ जाने का तुम्हें भय है और घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल और उसके मार्ग में जिहाद करने से अधिक प्रिय है तो प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला ले आए। औऱ अल्लाह अवज्ञाकारियों को मार्ग नहीं दिखाता।'
English Sahih:
Say, [O Muhammad], "If your fathers, your sons, your brothers, your wives, your relatives, wealth which you have obtained, commerce wherein you fear decline, and dwellings with which you are pleased are more beloved to you than Allah and His Messenger and jihad [i.e., striving] in His cause, then wait until Allah executes His command. And Allah does not guide the defiantly disobedient people." ([9] At-Tawbah : 24)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुम कह दो तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे कुनबे वाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें अन्देशा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसन्द करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहाँ तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफरमान लोगों की हिदायत नहीं करता