لَوْ كَانَ عَرَضًا قَرِيْبًا وَّسَفَرًا قَاصِدًا لَّاتَّبَعُوْكَ وَلٰكِنْۢ بَعُدَتْ عَلَيْهِمُ الشُّقَّةُۗ وَسَيَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ لَوِ اسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْۚ يُهْلِكُوْنَ اَنْفُسَهُمْۚ وَاللّٰهُ يَعْلَمُ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ࣖ ( التوبة: ٤٢ )
Law kana 'aradan qareeban wasafaran qasidan laittaba'ooka walakin ba'udat 'alayhimu alshshuqqatu wasayahlifoona biAllahi lawi istata'na lakharajna ma'akum yuhlikoona anfusahum waAllahu ya'lamu innahum lakathiboona (at-Tawbah 9:42)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि निकट (भविष्य में) ही कुछ मिलनेवाला होता और सफ़र भी हलका होता तो वे अवश्य तुम्हारे पीछे चल पड़ते, किन्तु मार्ग की दूरी उन्हें कठिन और बहुत दीर्घ प्रतीत हुई। अब वे अल्लाह की क़समें खाएँगे कि, 'यदि हममें इसकी सामर्थ्य होती तो हम अवश्य तुम्हारे साथ निकलते।' वे अपने आपको तबाही में डाल रहे है और अल्लाह भली-भाँति जानता है कि निश्चय ही वे झूठे है
English Sahih:
Had it been a near [i.e., easy] gain and a moderate trip, they [i.e., the hypocrites] would have followed you, but distant to them was the journey. And they will swear by Allah, "If we were able, we would have gone forth with you," destroying themselves [through false oaths], and Allah knows that indeed they are liars. ([9] At-Tawbah : 42)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) अगर सरे दस्त फ़ायदा और सफर आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर इन पर मुसाफ़त (सफ़र) की मशक़क़त (सख्ती) तूलानी हो गई और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन ख़ुदा की क़समें खॉएगें कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेशक झूठे हैं