۞ وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ نُوْحٍۘ اِذْ قَالَ لِقَوْمِهٖ يٰقَوْمِ اِنْ كَانَ كَبُرَ عَلَيْكُمْ مَّقَامِيْ وَتَذْكِيْرِيْ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ فَعَلَى اللّٰهِ تَوَكَّلْتُ فَاَجْمِعُوْٓا اَمْرَكُمْ وَشُرَكَاۤءَكُمْ ثُمَّ لَا يَكُنْ اَمْرُكُمْ عَلَيْكُمْ غُمَّةً ثُمَّ اقْضُوْٓا اِلَيَّ وَلَا تُنْظِرُوْنِ ( يونس: ٧١ )
Waotlu 'alayhim nabaa noohin ith qala liqawmihi ya qawmi in kana kabura 'alaykum maqamee watathkeeree biayati Allahi fa'ala Allahi tawakkaltu faajmi'oo amrakum washurakaakum thumma la yakun amrukum 'alaykum ghummatan thumma iqdoo ilayya wala tunthirooni (al-Yūnus 10:71)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उन्हें नूह का वृत्तान्त सुनाओ। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों के द्वारा नसीहत करना तुम्हें भारी हो गया है तो मेरा भरोसा अल्लाह पर है। तु अपना मामला ठहरा लो और अपने ठहराए हुए साझीदारों को भी साथ ले लो, फिर तुम्हारा मामला तुम पर कुछ संदिग्ध न रहे; फिर मेरे साथ जो कुछ करना है, कर डालों और मुझे मुहलत न दो।'
English Sahih:
And recite to them the news of Noah, when he said to his people, "O my people, if my residence and my reminding of the signs of Allah has become burdensome upon you – then I have relied upon Allah. So resolve upon your plan and [call upon] your associates. Then let not your plan be obscure to you. Then carry it out upon me and do not give me respite. ([10] Yunus : 71)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और (ऐ रसूल) तुम उनके सामने नूह का हाल पढ़ दो जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मेरा ठहरना और ख़ुदा की आयतों का चर्चा करना तुम पर शाक़ व गिरां (बुरा) गुज़रता है तो मैं सिर्फ ख़ुदा ही पर भरोसा रखता हूँ तो तुम और तुमहारे शरीक़ सब मिलकर अपना काम ठीक कर लो फिर तुम्हारी बात तुम (में से किसी) पर महज़ (छुपी) न रहे फिर (जो तुम्हारा जी चाहे) मेरे साथ कर गुज़रों और गुझे (दम मारने की भी) मोहलत न दो