فَلَوْلَا كَانَتْ قَرْيَةٌ اٰمَنَتْ فَنَفَعَهَآ اِيْمَانُهَآ اِلَّا قَوْمَ يُوْنُسَۗ لَمَّآ اٰمَنُوْا كَشَفْنَا عَنْهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَمَتَّعْنٰهُمْ اِلٰى حِيْنٍ ( يونس: ٩٨ )
Falawla kanat qaryatun amanat fanafa'aha eemanuha illa qawma yoonusa lamma amanoo kashafna 'anhum 'athaba alkhizyi fee alhayati alddunya wamatta'nahum ila heenin (al-Yūnus 10:98)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
फिर ऐसी कोई बस्ती क्यों न हुई कि वह ईमान लाती और उसका ईमान उसके लिए लाभप्रद सिद्ध होता? हाँ, यूनुस की क़ौम के लोग इसके लिए अपवाद है। जब वे ईमान लाए तो हमने सांसारिक जीवन में अपमानजनक यातना को उनपर से टाल दिया और उन्हें एक अवधि तक सुखोपभोग का अवसर प्रदान किया
English Sahih:
Then has there not been a [single] city that believed so its faith benefited it except the people of Jonah? When they believed, We removed from them the punishment of disgrace in worldly life and gave them enjoyment [i.e., provision] for a time. ([10] Yunus : 98)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
कोई बस्ती ऐसी क्यों न हुई कि ईमान क़ुबूल करती तो उसको उसका ईमान फायदे मन्द होता हाँ यूनूस की क़ौम जब (अज़ाब देख कर) ईमान लाई तो हमने दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में उनसे रुसवाई का अज़ाब दफा कर दिया और हमने उन्हें एक ख़ास वक्त तक चैन करने दिया