لَا تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ اِلٰى مَا مَتَّعْنَا بِهٖٓ اَزْوَاجًا مِّنْهُمْ وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِلْمُؤْمِنِيْنَ ( الحجر: ٨٨ )
La tamuddanna 'aynayka ila ma matta'na bihi azwajan minhum wala tahzan 'alayhim waikhfid janahaka lilmumineena (al-Ḥijr 15:88)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो कुछ सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दी है, तुम उसपर अपनी आँखें न पसारो और न उनपर दुखी हो, तुम तो अपनी भुजाएँ मोमिनों के लिए झुकाए रखो,
English Sahih:
Do not extend your eyes toward that by which We have given enjoyment to [certain] categories of them [i.e., the disbelievers], and do not grieve over them. And lower your wing [i.e., show kindness] to the believers. ([15] Al-Hijr : 88)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और हमने जो उन कुफ्फारों में से कुछ लोगों को (दुनिया की) माल व दौलत से निहाल कर दिया है तुम उसकी तरफ हरगिज़ नज़र भी न उठाना और न उनकी (बेदीनी) पर कुछ अफसोस करना और ईमानदारों से (अगरचे ग़रीब हो) झुककर मिला करो और कहा दो कि मै तो (अज़ाबे ख़ुदा से) सरीही तौर से डराने वाला हूँ