وَلَا تَتَّخِذُوْٓا اَيْمَانَكُمْ دَخَلًا ۢ بَيْنَكُمْ فَتَزِلَّ قَدَمٌۢ بَعْدَ ثُبُوْتِهَا وَتَذُوْقُوا السُّوْۤءَ بِمَا صَدَدْتُّمْ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ۚوَلَكُمْ عَذَابٌ عَظِيْمٌ ( النحل: ٩٤ )
Wala tattakhithoo aymanakum dakhalan baynakum fatazilla qadamun ba'da thubootiha watathooqoo alssooa bima sadadtum 'an sabeeli Allahi walakum 'athabun 'atheemun (an-Naḥl 16:94)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना न बना लेना। कहीं ऐसा न हो कि कोई क़दम जमने के पश्चात उखड़ जाए और अल्लाह के मार्ग से तुम्हारे रोकने के बदले में तुम्हें तकलीफ़ का मज़ा चखना पड़े और तुम एक बड़ी यातना के भागी ठहरो
English Sahih:
And do not take your oaths as [means of] deceit between you, lest a foot slip after it was [once] firm, and you would taste evil [in this world] for what [people] you diverted from the way of Allah, and you would have [in the Hereafter] a great punishment. ([16] An-Nahl : 94)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और तुम अपनी क़समों को आपस में के फसाद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएँ और फिर आख़िरकार क़यामत में तुम्हें लोगों को ख़ुदा की राह से रोकने की पादाश (रोकने के बदले) में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख्त अज़ाब हो