وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِيْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ لِيَذَّكَّرُوْاۗ وَمَا يَزِيْدُهُمْ اِلَّا نُفُوْرًا ( الإسراء: ٤١ )
And verily
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
We have explained
صَرَّفْنَا
फेर-फेर कर लाए हैं हम
in
فِى
इस क़ुरआन में
this
هَٰذَا
इस क़ुरआन में
the Quran
ٱلْقُرْءَانِ
इस क़ुरआन में
that they may take heed
لِيَذَّكَّرُوا۟
ताकि वो नसीहत पकड़ें
but not
وَمَا
और नहीं
it increases them
يَزِيدُهُمْ
वो ज़्यादा करता उन्हें
except
إِلَّا
मगर
(in) aversion
نُفُورًا
नफ़रत में
Walaqad sarrafna fee hatha alqurani liyaththakkaroo wama yazeeduhum illa nufooran (al-ʾIsrāʾ 17:41)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
हमने इस क़ुरआन में विभिन्न ढंग से बात का स्पष्टीकरण किया कि वे चेतें, किन्तु इसमें उनकी नफ़रत ही बढ़ती है
English Sahih:
And We have certainly diversified [the contents] in this Quran that they [i.e., mankind] may be reminded, but it does not increase them [i.e., the disbelievers] except in aversion. ([17] Al-Isra : 41)