اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ يَبْتَغُوْنَ اِلٰى رَبِّهِمُ الْوَسِيْلَةَ اَيُّهُمْ اَقْرَبُ وَيَرْجُوْنَ رَحْمَتَهٗ وَيَخَافُوْنَ عَذَابَهٗۗ اِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُوْرًا ( الإسراء: ٥٧ )
Olaika allatheena yad'oona yabtaghoona ila rabbihimu alwaseelata ayyuhum aqrabu wayarjoona rahmatahu wayakhafoona 'athabahu inna 'athaba rabbika kana mahthooran (al-ʾIsrāʾ 17:57)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जिनको ये लोग पुकारते है वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते है कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते है और उसकी यातना से डरते रहते है। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़!
English Sahih:
Those whom they invoke seek means of access to their Lord, [striving as to] which of them would be nearest, and they hope for His mercy and fear His punishment. Indeed, the punishment of your Lord is ever feared. ([17] Al-Isra : 57)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ये लोग जिनको मुशरेकीन (अपना ख़ुदा समझकर) इबादत करते हैं वह खुद अपने परवरदिगार की क़ुरबत के ज़रिए ढूँढते फिरते हैं कि (देखो) इनमें से कौन ज्यादा कुरबत रखता है और उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते हैं इसमें शक़ नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है