وَاِذَآ اَنْعَمْنَا عَلَى الْاِنْسَانِ اَعْرَضَ وَنَاٰ بِجَانِبِهٖۚ وَاِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ يَـُٔوْسًا ( الإسراء: ٨٣ )
And when
وَإِذَآ
और जब
We bestow favor
أَنْعَمْنَا
इनआम करते हैं हम
on
عَلَى
इन्सान पर
man
ٱلْإِنسَٰنِ
इन्सान पर
he turns away
أَعْرَضَ
वो ऐराज़ करता है
and becomes remote
وَنَـَٔا
और वो दूर कर लेता है
on his side
بِجَانِبِهِۦۖ
पहलू अपना
And when
وَإِذَا
और जब
touches him
مَسَّهُ
पहुँचती है उसे
the evil
ٱلشَّرُّ
तकलीफ़
he is
كَانَ
हो जाता है वो
(in) despair
يَـُٔوسًا
बहुत मायूस
Waitha an'amna 'ala alinsani a'rada wanaa bijanibihi waitha massahu alshsharru kana yaoosan (al-ʾIsrāʾ 17:83)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
मानव पर जब हम सुखद कृपा करते है तो वह मुँह फेरता और अपना पहलू बचाता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है, तो वह निराश होने लगता है
English Sahih:
And when We bestow favor upon man [i.e., the disbeliever], he turns away and distances himself; and when evil touches him, he is ever despairing. ([17] Al-Isra : 83)