निश्चय ही जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ते हैं, इस हाल मे कि नमाज़ के पाबन्द हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से छिपे और खुले ख़र्च किया है, वे एक ऐसे व्यापार की आशा रखते है जो कभी तबाह न होगा
English Sahih:
Indeed, those who recite the Book of Allah and establish prayer and spend [in His cause] out of what We have provided them, secretly and publicly, [can] expect a transaction [i.e., profit] that will never perish – ([35] Fatir : 29)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
बेशक जो लोग Âुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (खुदा की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं
2 Azizul-Haqq Al-Umary
वास्तव में, जो पढ़ते हैं अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन), उन्होंने स्थापना की नमाज़ की एवं दान किया उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, खुले तथा छुपे, तो वही आशा रखते हैं ऐसे व्यापार की, जो कदापि हानिकर नहीं होगा।