وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ ۙقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنُطْعِمُ مَنْ لَّوْ يَشَاۤءُ اللّٰهُ اَطْعَمَهٗٓ ۖاِنْ اَنْتُمْ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ( يس: ٤٧ )
Waitha qeela lahum anfiqoo mimma razaqakumu Allahu qala allatheena kafaroo lillatheena amanoo anut'imu man law yashao Allahu at'amahu in antum illa fee dalalin mubeenin (Yāʾ Sīn 36:47)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जब उनसे कहा जाता है कि 'अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।' तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए है, कहते है, 'क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।'
English Sahih:
And when it is said to them, "Spend from that which Allah has provided for you," those who disbelieve say to those who believe, "Should we feed one whom, if Allah had willed, He would have fed? You are not but in clear error." ([36] Ya-Sin : 47)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जब उन (कुफ्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खुदा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खुदा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख्याल के मुवाफ़िक़) खुदा चाहता तो उसको खुद खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो