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وَلَوْ نَشَاۤءُ لَمَسَخْنٰهُمْ عَلٰى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوْا مُضِيًّا وَّلَا يَرْجِعُوْنَ ࣖ   ( يس: ٦٧ )

And if
وَلَوْ
और अगर
We willed
نَشَآءُ
हम चाहें
surely We (would have) transformed them
لَمَسَخْنَٰهُمْ
अलबत्ता मसख़ कर दें हम उन्हें
in
عَلَىٰ
उनकी जगहों पर
their places
مَكَانَتِهِمْ
उनकी जगहों पर
then not
فَمَا
तो ना
they would have been able
ٱسْتَطَٰعُوا۟
वो इस्तिताअत रखते होंगे
to proceed
مُضِيًّا
चलने की
and not
وَلَا
और ना
return
يَرْجِعُونَ
वो पलट सकेंगे

Walaw nashao lamasakhnahum 'ala makanatihim fama istata'oo mudiyyan wala yarji'oona (Yāʾ Sīn 36:67)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

यदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते।

English Sahih:

And if We willed, We could have deformed them, [paralyzing them] in their places so they would not be able to proceed, nor could they return. ([36] Ya-Sin : 67)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें