وَمَا كُنْتُمْ تَسْتَتِرُوْنَ اَنْ يَّشْهَدَ عَلَيْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَآ اَبْصَارُكُمْ وَلَا جُلُوْدُكُمْ وَلٰكِنْ ظَنَنْتُمْ اَنَّ اللّٰهَ لَا يَعْلَمُ كَثِيْرًا مِّمَّا تَعْمَلُوْنَ ( فصلت: ٢٢ )
Wama kuntum tastatiroona an yashhada 'alaykum sam'ukum wala absarukum wala juloodukum walakin thanantum anna Allaha la ya'lamu katheeran mimma ta'maloona (Fuṣṣilat 41:22)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम इस भय से छिपते न थे कि तुम्हारे कान तुम्हारे विरुद्ध गवाही देंगे, और न इसलिए कि तुम्हारी आँखें गवाही देंगी और न इस कारण से कि तुम्हारी खाले गवाही देंगी, बल्कि तुमने तो यह समझ रखा था कि अल्लाह तुम्हारे बहुत-से कामों को जानता ही नहीं
English Sahih:
And you were not covering [i.e., protecting] yourselves, lest your hearing testify against you or your sight or your skins, but you assumed that Allah does not know much of what you do. ([41] Fussilat : 22)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी ऑंखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरख़िलाफ गवाही देंगे बल्कि तुम इस ख्याल मे (भूले हुए) थे कि ख़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं