قَالُوْا نُرِيْدُ اَنْ نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَىِٕنَّ قُلُوْبُنَا وَنَعْلَمَ اَنْ قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُوْنَ عَلَيْهَا مِنَ الشّٰهِدِيْنَ ( المائدة: ١١٣ )
They said
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
"We wish
نُرِيدُ
हम चाहते हैं
that
أَن
कि
we eat
نَّأْكُلَ
हम खाऐं
from it
مِنْهَا
उससे
and satisfy
وَتَطْمَئِنَّ
और मुत्मईन हो जाऐं
our hearts
قُلُوبُنَا
दिल हमारे
and we know
وَنَعْلَمَ
और हम जान लें
that
أَن
कि
certainly
قَدْ
तहक़ीक़
you have spoken the truth to us
صَدَقْتَنَا
सच कहा तूने हम से
and we be
وَنَكُونَ
और हम हो जाऐं
over it
عَلَيْهَا
उस पर
among
مِنَ
गवाहों में से
the witnesses
ٱلشَّٰهِدِينَ
गवाहों में से
Qaloo nureedu an nakula minha watatmainna quloobuna wana'lama an qad sadaqtana wanakoona 'alayha mina alshshahideena (al-Māʾidah 5:113)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे बोले, 'हम चाहते हैं कि उनमें से खाएँ और हमारे हृदय सन्तुष्ट हो और हमें मालूम हो जाए कि तूने हमने सच कहा और हम उसपर गवाह रहें।'
English Sahih:
They said, "We wish to eat from it and let our hearts be reassured and know that you have been truthful to us and be among its witnesses." ([5] Al-Ma'idah : 113)