وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيْهَآ اَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالْاَنْفَ بِالْاَنْفِ وَالْاُذُنَ بِالْاُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّۙ وَالْجُرُوْحَ قِصَاصٌۗ فَمَنْ تَصَدَّقَ بِهٖ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهٗ ۗوَمَنْ لَّمْ يَحْكُمْ بِمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ( المائدة: ٤٥ )
Wakatabna 'alayhim feeha anna alnnafsa bialnnafsi waal'ayna bial'ayni waalanfa bialanfi waalothuna bialothuni waalssinna bialssinni waaljurooha qisasun faman tasaddaqa bihi fahuwa kaffaratun lahu waman lam yahkum bima anzala Allahu faolaika humu alththalimoona (al-Māʾidah 5:45)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और हमने उस (तौरात) में उनके लिए लिख दिया था कि जान जान के बराबर है, आँख आँख के बराहर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर, दाँत दाँत के बराबर और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है। तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो यह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है जो ऐसे लोग अत्याचारी है
English Sahih:
And We ordained for them therein a life for a life, an eye for an eye, a nose for a nose, an ear for an ear, a tooth for a tooth, and for wounds is legal retribution. But whoever gives [up his right as] charity, it is an expiation for him. And whoever does not judge by what Allah has revealed – then it is those who are the wrongdoers [i.e., the unjust]. ([5] Al-Ma'idah : 45)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और हम ने तौरेत में यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज क़र दिया था कि जान के बदले जान और ऑख के बदले ऑख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दॉत के बदले दॉत और जख्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ्फ़ारा हो जाएगा और जो शख्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुवाफ़िक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं