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وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيْهَآ اَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالْاَنْفَ بِالْاَنْفِ وَالْاُذُنَ بِالْاُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّۙ وَالْجُرُوْحَ قِصَاصٌۗ فَمَنْ تَصَدَّقَ بِهٖ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهٗ ۗوَمَنْ لَّمْ يَحْكُمْ بِمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ  ( المائدة: ٤٥ )

And We ordained
وَكَتَبْنَا
और लिख दिया हमने
for them
عَلَيْهِمْ
उन पर
in it
فِيهَآ
उसमें
that
أَنَّ
बेशक
the life
ٱلنَّفْسَ
जान
for the life
بِٱلنَّفْسِ
बदले जान के
and the eye
وَٱلْعَيْنَ
और आँख
for the eye
بِٱلْعَيْنِ
बदले आँख के
and the nose
وَٱلْأَنفَ
और नाक
for the nose
بِٱلْأَنفِ
बदले नाक के
and the ear
وَٱلْأُذُنَ
और कान
for the ear
بِٱلْأُذُنِ
बदले कान के
and the tooth
وَٱلسِّنَّ
और दाँत
for the tooth
بِٱلسِّنِّ
बदले दाँत के
and (for) wounds
وَٱلْجُرُوحَ
और तमाम ज़ख़्मों का भी
(is) retribution
قِصَاصٌۚ
बदला है
But whoever
فَمَن
तो जो कोई
gives charity
تَصَدَّقَ
सदक़ा (माफ़) कर दे
with it
بِهِۦ
उसको
then it is
فَهُوَ
तो वो
an expiation
كَفَّارَةٌ
कफ़्फ़ारा होगा
for him
لَّهُۥۚ
उसके लिए
And whoever
وَمَن
और जो कोई
(does) not
لَّمْ
ना
judge
يَحْكُم
फ़ैसला करे
by what
بِمَآ
उसके मुताबिक़ जो
has revealed
أَنزَلَ
नाज़िल किया
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
then those
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
[they]
هُمُ
वो
(are) the wrongdoers
ٱلظَّٰلِمُونَ
जो ज़लिम हैं

Wakatabna 'alayhim feeha anna alnnafsa bialnnafsi waal'ayna bial'ayni waalanfa bialanfi waalothuna bialothuni waalssinna bialssinni waaljurooha qisasun faman tasaddaqa bihi fahuwa kaffaratun lahu waman lam yahkum bima anzala Allahu faolaika humu alththalimoona (al-Māʾidah 5:45)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और हमने उस (तौरात) में उनके लिए लिख दिया था कि जान जान के बराबर है, आँख आँख के बराहर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर, दाँत दाँत के बराबर और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है। तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो यह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है जो ऐसे लोग अत्याचारी है

English Sahih:

And We ordained for them therein a life for a life, an eye for an eye, a nose for a nose, an ear for an ear, a tooth for a tooth, and for wounds is legal retribution. But whoever gives [up his right as] charity, it is an expiation for him. And whoever does not judge by what Allah has revealed – then it is those who are the wrongdoers [i.e., the unjust]. ([5] Al-Ma'idah : 45)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और हम ने तौरेत में यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज क़र दिया था कि जान के बदले जान और ऑख के बदले ऑख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दॉत के बदले दॉत और जख्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ्फ़ारा हो जाएगा और जो शख्स ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) के मुवाफ़िक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं