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اَمْ اَمِنْتُمْ مَّنْ فِى السَّمَاۤءِ اَنْ يُّرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًاۗ فَسَتَعْلَمُوْنَ كَيْفَ نَذِيْرِ   ( الملك: ١٧ )

Or
أَمْ
क्या
do you feel secure
أَمِنتُم
बेख़ौफ़ हो गए तुम
(from Him) Who
مَّن
उससे जो
(is) in
فِى
आसमान में है
the heaven
ٱلسَّمَآءِ
आसमान में है
not
أَن
कि
He will send
يُرْسِلَ
वो भेजे
against you
عَلَيْكُمْ
तुम पर
a storm of stones?
حَاصِبًاۖ
पत्थरों की आँधी
Then you would know
فَسَتَعْلَمُونَ
पस अनक़रीब तुम जान लोगे
how
كَيْفَ
कैसा था
(was) My warning?
نَذِيرِ
डराना मेरा

Am amintum man fee alssamai an yursila 'alaykum hasiban fasata'lamoona kayfa natheeri (al-Mulk 67:17)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

या तुम उससे निश्चिन्त हो जो आकाश में है कि वह तुमपर पथराव करनेवाली वायु भेज दे? फिर तुम जान लोगे कि मेरी चेतावनी कैसी होती है

English Sahih:

Or do you feel secure that He who is above would not send against you a storm of stones? Then you would know how [severe] was My warning. ([67] Al-Mulk : 17)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

या तुम इस बात से बेख़ौफ हो कि जो आसमान में (सल्तनत करता) है कि तुम पर पत्थर भरी ऑंधी चलाए तो तुम्हें अनक़रीेब ही मालूम हो जाएगा कि मेरा डराना कैसा है