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وَاِنْ اَحَدٌ مِّنَ الْمُشْرِكِيْنَ اسْتَجَارَكَ فَاَجِرْهُ حَتّٰى يَسْمَعَ كَلٰمَ اللّٰهِ ثُمَّ اَبْلِغْهُ مَأْمَنَهٗ ۗذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْلَمُوْنَ ࣖ  ( التوبة: ٦ )

And if
وَإِنْ
और अगर
anyone
أَحَدٌ
कोई एक
of
مِّنَ
मुशरिकीन में से
the polytheists
ٱلْمُشْرِكِينَ
मुशरिकीन में से
seek your protection
ٱسْتَجَارَكَ
पनाह माँगे आपसे
then grant him protection
فَأَجِرْهُ
तो पनाह दे दीजिए उसे
until
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
he hears
يَسْمَعَ
वो सुन ले
(the) Words of Allah
كَلَٰمَ
कलाम
(the) Words of Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह का
Then
ثُمَّ
फिर
escort him
أَبْلِغْهُ
पहुँचा दीजिए उसे
(to) his place of safety
مَأْمَنَهُۥۚ
उसके अमन की जगह
That
ذَٰلِكَ
ये
(is) because they
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके कि वो
(are) a people
قَوْمٌ
लोग
(who) do not know
لَّا
नहीं वो इल्म रखते
(who) do not know
يَعْلَمُونَ
नहीं वो इल्म रखते

Wain ahadun mina almushrikeena istajaraka faajirhu hatta yasma'a kalama Allahi thumma ablighhu mamanahu thalika biannahum qawmun la ya'lamoona (at-Tawbah 9:6)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और यदि मुशरिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो तुम उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुन ले। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ज्ञान नहीं

English Sahih:

And if any one of the polytheists seeks your protection, then grant him protection so that he may hear the words of Allah [i.e., the Quran]. Then deliver him to his place of safety. That is because they are a people who do not know. ([9] At-Tawbah : 6)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह ख़ुदा का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं