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وَمِنْهُمُ الَّذِيْنَ يُؤْذُوْنَ النَّبِيَّ وَيَقُوْلُوْنَ هُوَ اُذُنٌ ۗقُلْ اُذُنُ خَيْرٍ لَّكُمْ يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِيْنَ وَرَحْمَةٌ لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْۗ وَالَّذِيْنَ يُؤْذُوْنَ رَسُوْلَ اللّٰهِ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ   ( التوبة: ٦١ )

And among them
وَمِنْهُمُ
और कुछ उनमें से हैं
(are) those who
ٱلَّذِينَ
जो
hurt
يُؤْذُونَ
अज़ियत देते हैं
the Prophet
ٱلنَّبِىَّ
नबी को
and they say
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
"He is
هُوَ
वो
(all) ear"
أُذُنٌۚ
कान हैं
Say
قُلْ
कह दीजिए
"An ear
أُذُنُ
कान हैं
(of) goodness
خَيْرٍ
भलाई का
for you
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
he believes
يُؤْمِنُ
वो ईमान रखता है
in Allah
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
and believes
وَيُؤْمِنُ
और वो ऐतमाद करता है
the believers
لِلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों पर
and (is) a mercy
وَرَحْمَةٌ
और रहमत है
to those who
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जो
believe
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
among you"
مِنكُمْۚ
तुम में से
And those who
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
hurt
يُؤْذُونَ
अज़ियत देते हैं
(the) Messenger
رَسُولَ
अल्लाह के रसूल को
(of) Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के रसूल को
for them
لَهُمْ
उनके लिए
(is) a punishment
عَذَابٌ
अज़ाब है
painful
أَلِيمٌ
दर्दनाक

Waminhumu allatheena yuthoona alnnabiyya wayaqooloona huwa othunun qul othunu khayrin lakum yuminu biAllahi wayuminu lilmumineena warahmatun lillatheena amanoo minkum waallatheena yuthoona rasoola Allahi lahum 'athabun aleemun (at-Tawbah 9:61)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और उनमें कुछ लोग ऐसे हैं, जो नबी को दुख देते है और कहते है, 'वह तो निरा कान है!' कह दो, 'वह सर्वथा कान तुम्हारी भलाई के लिए है। वह अल्लाह पर ईमान रखता है और ईमानवालों पर भी विश्वास करता है। और उन लोगों के लिए सर्वथा दयालुता है जो तुममें से ईमान लाए है। रहे वे लोग जो अल्लाह के रसूल को दुख देते है, उनके लिए दुखद यातना है।'

English Sahih:

And among them are those who abuse the Prophet and say, "He is an ear." Say, "[It is] an ear of goodness for you that believes in Allah and believes the believers and [is] a mercy to those who believe among you." And those who abuse the Messenger of Allah – for them is a painful punishment. ([9] At-Tawbah : 61)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और उसमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं कि बस ये कान ही (कान) हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुन्ने के कान हैं कि ख़ुदा पर ईमान रखते हैं और मोमिनीन की (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुममें से जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके लिए रहमत और जो लोग रसूले ख़ुदा को सताते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब हैं