وَاَقِمِ الصَّلٰوةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِّنَ الَّيْلِ ۗاِنَّ الْحَسَنٰتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّاٰتِۗ ذٰلِكَ ذِكْرٰى لِلذَّاكِرِيْنَ ( هود: ١١٤ )
And establish
وَأَقِمِ
और क़ायम कीजिए
the prayer
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
(at the) two ends
طَرَفَىِ
दोनों किनारों पर
(of) the day
ٱلنَّهَارِ
दिन के
and (at) the approach
وَزُلَفًا
और कुछ हिस्सा
of
مِّنَ
रात में से
the night
ٱلَّيْلِۚ
रात में से
Indeed
إِنَّ
बेशक
the good deeds
ٱلْحَسَنَٰتِ
नेकियाँ
remove
يُذْهِبْنَ
ले जाती हैं
the evil deeds
ٱلسَّيِّـَٔاتِۚ
बुराइयों को
That
ذَٰلِكَ
ये
(is) a reminder
ذِكْرَىٰ
याद दिहानी है
for those who remember
لِلذَّٰكِرِينَ
याद रखने वालों के लिए
Waaqimi alssalata tarafayi alnnahari wazulafan mina allayli inna alhasanati yuthhibna alssayyiati thalika thikra lilththakireena (Hūd 11:114)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है
English Sahih:
And establish prayer at the two ends of the day and at the approach of the night. Indeed, good deeds do away with misdeeds. That is a reminder for those who remember. ([11] Hud : 114)