اَفَاَمِنْتُمْ اَنْ يَّخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ اَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لَا تَجِدُوْا لَكُمْ وَكِيْلًا ۙ ( الإسراء: ٦٨ )
Do you then feel secure
أَفَأَمِنتُمْ
क्या बेख़ौफ़ हो गए तुम
that (not)
أَن
कि
He will cause to swallow
يَخْسِفَ
वो धँसा दे
you
بِكُمْ
तुम्हें
side
جَانِبَ
ख़ुश्की की जानिब
(of) the land
ٱلْبَرِّ
ख़ुश्की की जानिब
or
أَوْ
या
send
يُرْسِلَ
वो भेज दे
against you
عَلَيْكُمْ
तुम पर
a storm of stones?
حَاصِبًا
पत्थर बरसाने वाली आँधी
Then
ثُمَّ
फिर
not
لَا
ना तुम पाओगे
you will find
تَجِدُوا۟
ना तुम पाओगे
for you
لَكُمْ
अपने लिए
a guardian?
وَكِيلًا
कोई कारसाज़
Afaamintum an yakhsifa bikum janiba albarri aw yursila 'alaykum hasiban thumma la tajidoo lakum wakeelan (al-ʾIsrāʾ 17:68)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
क्या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह कभी थल की ओर ले जाकर तुम्हें धँसा दे या तुमपर पथराव करनेवाली आँधी भेज दे; फिर अपना कोई कार्यसाधक न पाओ?
English Sahih:
Then do you feel secure that [instead] He will not cause a part of the land to swallow you or send against you a storm of stones? Then you would not find for yourselves an advocate. ([17] Al-Isra : 68)