وَاُحِيْطَ بِثَمَرِهٖ فَاَصْبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيْهِ عَلٰى مَآ اَنْفَقَ فِيْهَا وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلٰى عُرُوْشِهَا وَيَقُوْلُ يٰلَيْتَنِيْ لَمْ اُشْرِكْ بِرَبِّيْٓ اَحَدًا ( الكهف: ٤٢ )
Waoheeta bithamarihi faasbaha yuqallibu kaffayhi 'ala ma anfaqa feeha wahiya khawiyatun 'ala 'urooshiha wayaqoolu ya laytanee lam oshrik birabbee ahadan (al-Kahf 18:42)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
हुआ भी यही कि उसका सारा फल घिराव में आ गया। उसने उसमें जो कुछ लागत लगाई थी, उसपर वह अपनी हथेलियों को नचाता रह गया. और स्थिति यह थी कि बाग़ अपनी टट्टियों पर हा पड़ा था और वह कह रहा था, 'क्या ही अच्छा होता कि मैंने अपने रब के साथ किसी को साझीदार न बनाया होता!'
English Sahih:
And his fruits were encompassed [by ruin], so he began to turn his hands about [in dismay] over what he had spent on it, while it had collapsed upon its trellises, and said, "Oh, I wish I had not associated with my Lord anyone." ([18] Al-Kahf : 42)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता