وَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنْ مَّنَعَ مَسٰجِدَ اللّٰهِ اَنْ يُّذْكَرَ فِيْهَا اسْمُهٗ وَسَعٰى فِيْ خَرَابِهَاۗ اُولٰۤىِٕكَ مَا كَانَ لَهُمْ اَنْ يَّدْخُلُوْهَآ اِلَّا خَاۤىِٕفِيْنَ ەۗ لَهُمْ فِى الدُّنْيَا خِزْيٌ وَّلَهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيْمٌ ( البقرة: ١١٤ )
Waman athlamu mimman mana'a masajida Allahi an yuthkara feeha ismuhu wasa'a fee kharabiha olaika ma kana lahum an yadkhulooha illa khaifeena lahum fee alddunya khizyun walahum fee alakhirati 'athabun 'atheemun (al-Baq̈arah 2:114)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाडने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है
English Sahih:
And who are more unjust than those who prevent the name of Allah from being mentioned [i.e., praised] in His mosques and strive toward their destruction. It is not for them to enter them except in fear. For them in this world is disgrace, and they will have in the Hereafter a great punishment. ([2] Al-Baqarah : 114)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से (लोगों को) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो, ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आख़ेरत में बड़ा भारी अज़ाब है