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اِذْ تَلَقَّوْنَهٗ بِاَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِكُمْ مَّا لَيْسَ لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ وَّتَحْسَبُوْنَهٗ هَيِّنًاۙ وَّهُوَ عِنْدَ اللّٰهِ عَظِيْمٌ ۚ  ( النور: ١٥ )

When
إِذْ
जब
you received it
تَلَقَّوْنَهُۥ
तुम ले रहे थे उसे
with your tongues
بِأَلْسِنَتِكُمْ
अपनी ज़बानों से
and you said
وَتَقُولُونَ
और तुम कह रहे थे
with your mouths
بِأَفْوَاهِكُم
अपने मुँहों से
what
مَّا
वो जो
not
لَيْسَ
नहीं (था)
for you
لَكُم
तुम्हें
of it
بِهِۦ
जिसका
any knowledge
عِلْمٌ
कोई इल्म
and you thought it
وَتَحْسَبُونَهُۥ
और तुम समझ रहे थे उसे
(was) insignificant
هَيِّنًا
मामूली
while it
وَهُوَ
हालाँकि वो
(was) near Allah
عِندَ
नज़दीक
(was) near Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के
great
عَظِيمٌ
बहुत बड़ा था

Ith talaqqawnahu bialsinatikum wataqooloona biafwahikum ma laysa lakum bihi 'ilmun watahsaboonahu hayyinan wahuwa 'inda Allahi 'atheemun (an-Nūr 24:15)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

सोचो, जब तुम एक-दूसरे से उस (झूठ) को अपनी ज़बानों पर लेते जा रहे थे और तुम अपने मुँह से वह कुछ कहे जो रहे थे, जिसके विषय में तुम्हें कोई ज्ञान न था और तुम उसे एक साधारण बात समझ रहे थे; हालाँकि अल्लाह के निकट वह एक भारी बात थी

English Sahih:

When you received it with your tongues and said with your mouths that of which you had no knowledge and thought it was insignificant while it was, in the sight of Allah, tremendous. ([24] An-Nur : 15)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

कि तुम अपनी ज़बानों से इसको एक दूसरे से बयान करने लगे और अपने मुँह से ऐसी बात कहते थे जिसका तुम्हें इल्म व यक़ीन न था (और लुत्फ ये है कि) तुमने इसको एक आसान बात समझी थी हॉलाकि वह ख़ुदा के नज़दीक बड़ी सख्त बात थी