۞ وَمِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مَنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِقِنْطَارٍ يُّؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِدِيْنَارٍ لَّا يُؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَ اِلَّا مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَاۤىِٕمًا ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَيْسَ عَلَيْنَا فِى الْاُمِّيّٖنَ سَبِيْلٌۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ( آل عمران: ٧٥ )
Wamin ahli alkitabi man in tamanhu biqintarin yuaddihi ilayka waminhum man in tamanhu bideenarin la yuaddihi ilayka illa ma dumta 'alayhi qaiman thalika biannahum qaloo laysa 'alayna fee alommiyyeena sabeelun wayaqooloona 'ala Allahi alkathiba wahum ya'lamoona (ʾĀl ʿImrān 3:75)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, 'उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।' और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है
English Sahih:
And among the People of the Scripture is he who, if you entrust him with a great amount [of wealth], he will return it to you. And among them is he who, if you entrust him with a [single] coin, he will not return it to you unless you are constantly standing over him [demanding it]. That is because they say, "There is no blame upon us concerning the unlearned." And they speak untruth about Allah while they know [it]. ([3] Ali 'Imran : 75)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अहले किताब कुछ ऐसे भी हैं कि अगर उनके पास रूपए की ढेर अमानत रख दो तो भी उसे (जब चाहो) वैसे ही तुम्हारे हवाले कर देंगे और बाज़ ऐसे हें कि अगर एक अशर्फ़ी भी अमानत रखो तो जब तक तुम बराबर (उनके सर) पर खड़े न रहोगे तुम्हें वापस न देंगे ये (बदमुआम लगी) इस वजह से है कि उन का तो ये क़ौल है कि (अरब के) जाहिलो (का हक़ मार लेने) में हम पर कोई इल्ज़ाम की राह ही नहीं और जान बूझ कर खुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं