يٰبُنَيَّ اَقِمِ الصَّلٰوةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوْفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَاصْبِرْ عَلٰى مَآ اَصَابَكَۗ اِنَّ ذٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ ( لقمان: ١٧ )
O my son!
يَٰبُنَىَّ
ऐ मेरे बेटे
Establish
أَقِمِ
क़ायम करो
the prayer
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
and enjoin
وَأْمُرْ
और हुक्म दो
[with] the right
بِٱلْمَعْرُوفِ
नेकी का
and forbid
وَٱنْهَ
और रोको
from
عَنِ
बुराई से
the wrong
ٱلْمُنكَرِ
बुराई से
and be patient
وَٱصْبِرْ
और सब्र करो
over
عَلَىٰ
उस पर
what
مَآ
जो
befalls you
أَصَابَكَۖ
पहुँचे तुझे
Indeed
إِنَّ
बेशक
that
ذَٰلِكَ
ये है
(is) of
مِنْ
हिम्मत के कामों में से
the matters requiring determination
عَزْمِ
हिम्मत के कामों में से
the matters requiring determination
ٱلْأُمُورِ
हिम्मत के कामों में से
Ya bunayya aqimi alssalata wamur bialma'roofi wainha 'ani almunkari waisbir 'ala ma asabaka inna thalika min 'azmi alomoori (Luq̈mān 31:17)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
'ऐ मेरे बेटे! नमाज़ का आयोजन कर और भलाई का हुक्म दे और बुराई से रोक और जो मुसीबत भी तुझपर पड़े उसपर धैर्य से काम ले। निस्संदेह ये उन कामों में से है जो अनिवार्य और ढृढसंकल्प के काम है
English Sahih:
O my son, establish prayer, enjoin what is right, forbid what is wrong, and be patient over what befalls you. Indeed, [all] that is of the matters [requiring] resolve. ([31] Luqman : 17)