وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَنْ نُّؤْمِنَ بِهٰذَا الْقُرْاٰنِ وَلَا بِالَّذِيْ بَيْنَ يَدَيْهِۗ وَلَوْ تَرٰىٓ اِذِ الظّٰلِمُوْنَ مَوْقُوْفُوْنَ عِنْدَ رَبِّهِمْۖ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ اِلٰى بَعْضِ ِۨالْقَوْلَۚ يَقُوْلُ الَّذِيْنَ اسْتُضْعِفُوْا لِلَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْا لَوْلَآ اَنْتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِيْنَ ( سبإ: ٣١ )
Waqala allatheena kafaroo lan numina bihatha alqurani wala biallathee bayna yadayhi walaw tara ithi alththalimoona mawqoofoona 'inda rabbihim yarji'u ba'duhum ila ba'din alqawla yaqoolu allatheena istud'ifoo lillatheena istakbaroo lawla antum lakunna mumineena (Sabaʾ 34:31)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, 'हम इस क़ुरआन को कदापि न मानेंगे और न उसको जो इसके आगे है।' और यदि तुम देख पाते जब ज़ालिम अपने रब के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। वे आपस में एक-दूसरे पर इल्ज़ाम डाल रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर समझे गए वे उन लोगों से जो बड़े बनते थे कहेंगे, 'यदि तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमानवाले होते।'
English Sahih:
And those who disbelieve say, "We will never believe in this Quran nor in that before it." But if you could see when the wrongdoers are made to stand before their Lord, refuting each others' words... Those who were oppressed will say to those who were arrogant, "If not for you, we would have been believers." ([34] Saba : 31)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते)