۞ قُلْ اِنَّمَآ اَعِظُكُمْ بِوَاحِدَةٍۚ اَنْ تَقُوْمُوْا لِلّٰهِ مَثْنٰى وَفُرَادٰى ثُمَّ تَتَفَكَّرُوْاۗ مَا بِصَاحِبِكُمْ مِّنْ جِنَّةٍۗ اِنْ هُوَ اِلَّا نَذِيْرٌ لَّكُمْ بَيْنَ يَدَيْ عَذَابٍ شَدِيْدٍ ( سبإ: ٤٦ )
Qul innama a'ithukum biwahidatin an taqoomoo lillahi mathna wafurada thumma tatafakkaroo ma bisahibikum min jinnatin in huwa illa natheerun lakum bayna yaday 'athabin shadeedin (Sabaʾ 34:46)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
कहो, 'मैं तुम्हें बस एक बात की नसीहत करता हूँ कि अल्लाह के लिए दो-दो औऱ एक-एक करके उठ रखे हो; फिर विचार करो। तुम्हारे साथी को कोई उन्माद नहीं है। वह तो एक कठोर यातना से पहले तुम्हें सचेत करनेवाला ही है।'
English Sahih:
Say, "I only advise you of one [thing] – that you stand for Allah, [seeking truth] in pairs and individually, and then give thought." There is not in your companion any madness. He is only a warner to you before a severe punishment. ([34] Saba : 46)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुमसे नसीहत की बस एक बात कहता हूँ (वह) ये (है) कि तुम लोग बाज़ खुदा के वास्ते एक-एक और दो-दो उठ खड़े हो और अच्छी तरह ग़ौर करो तो (देख लोगे कि) तुम्हारे रफीक़ (मोहम्मद स0) को किसी तरह का जुनून नहीं वह तो बस तुम्हें एक सख्त अज़ाब (क़यामत) के सामने (आने) से डराने वाला है