يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اٰمِنُوْا بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّطْمِسَ وُجُوْهًا فَنَرُدَّهَا عَلٰٓى اَدْبَارِهَآ اَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّآ اَصْحٰبَ السَّبْتِ ۗ وَكَانَ اَمْرُ اللّٰهِ مَفْعُوْلًا ( النساء: ٤٧ )
Ya ayyuha allatheena ootoo alkitaba aminoo bima nazzalna musaddiqan lima ma'akum min qabli an natmisa wujoohan fanaruddaha 'ala adbariha aw nal'anahum kama la'anna ashaba alssabti wakana amru Allahi maf'oolan (an-Nisāʾ 4:47)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ लोगों! जिन्हें किताब दी गई, उस चीज को मानो जो हमने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो स्वयं तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों की रूपरेखा को मिटाकर रख दें और उन्हें उनके पीछ की ओर फेर दें या उनपर लानत करें, जिस प्रकार हमने सब्तवालों पर लानत की थी। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है
English Sahih:
O you who were given the Scripture, believe in what We have sent down [to Prophet Muhammad (^)], confirming that which is with you, before We obliterate faces and turn them toward their backs or curse them as We cursed the sabbath-breakers. And ever is the matter [i.e., decree] of Allah accomplished. ([4] An-Nisa : 47)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
पस उनमें से चन्द लोगों के सिवा और लोग ईमान ही न लाएंगे ऐ अहले किताब जो (किताब) हमने नाज़िल की है और उस (किताब) की भी तस्दीक़ करती है जो तुम्हारे पास है उस पर ईमान लाओ मगर क़ब्ल इसके कि हम कुछ लोगों के चेहरे बिगाड़कर उनके पुश्त की तरफ़ फेर दें या जिस तरह हमने असहाबे सबत (हफ्ते वालों) पर फिटकार बरसायी वैसी ही फिटकार उनपर भी करें