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اُنْظُرْ كَيْفَ يَفْتَرُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَۗ وَكَفٰى بِهٖٓ اِثْمًا مُّبِيْنًا ࣖ   ( النساء: ٥٠ )

See
ٱنظُرْ
देखो
how
كَيْفَ
किस तरह
they invent
يَفْتَرُونَ
वो गढ़ते हैं
about
عَلَى
अल्लाह पर
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
[the] lie
ٱلْكَذِبَۖ
झूठ
and sufficient
وَكَفَىٰ
और काफ़ी है
is it -
بِهِۦٓ
उसका
(as) a sin
إِثْمًا
गुनाह होना
manifest
مُّبِينًا
खुल्लम-खुला

Onthur kayfa yaftaroona 'ala Allahi alkathiba wakafa bihi ithman mubeenan (an-Nisāʾ 4:50)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

देखो तो सही, वे अल्लाह पर कैसा झूठ मढ़ते हैं? खुले गुनाह के लिए तो यही पर्याप्त है

English Sahih:

Look how they invent about Allah untruth, and sufficient is that as a manifest sin. ([4] An-Nisa : 50)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो ये लोग ख़ुदा पर कैसे कैसे झूठ तूफ़ान जोड़ते हैं और खुल्लम खुल्ला गुनाह के वास्ते तो यही काफ़ी है