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وَلَوْلَآ اَنْ يَّكُوْنَ النَّاسُ اُمَّةً وَّاحِدَةً لَّجَعَلْنَا لِمَنْ يَّكْفُرُ بِالرَّحْمٰنِ لِبُيُوْتِهِمْ سُقُفًا مِّنْ فِضَّةٍ وَّمَعَارِجَ عَلَيْهَا يَظْهَرُوْنَۙ   ( الزخرف: ٣٣ )

And if not
وَلَوْلَآ
और अगर ये ना होता
that
أَن
कि
(would) become
يَكُونَ
हो जाऐंगे
[the] mankind
ٱلنَّاسُ
लोग
a community
أُمَّةً
उम्मत
one
وَٰحِدَةً
एक ही
We (would have) made
لَّجَعَلْنَا
अलबत्ता बना देते हम
for (one) who
لِمَن
उनके लिए जो
disbelieves
يَكْفُرُ
कुफ़्र करते हैं
in the Most Gracious
بِٱلرَّحْمَٰنِ
रहमान का
for their houses
لِبُيُوتِهِمْ
उनके घरों की
roofs
سُقُفًا
छतें
of
مِّن
चाँदी से
silver
فِضَّةٍ
चाँदी से
and stairways
وَمَعَارِجَ
सीढ़ियाँ
upon which
عَلَيْهَا
जिन पर
they mount
يَظْهَرُونَ
वो चढ़ते हैं

Walawla an yakoona alnnasu ommatan wahidatan laja'alna liman yakfuru bialrrahmani libuyootihim suqufan min fiddatin wama'arija 'alayha yathharoona (az-Zukhruf 43:33)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

यदि इस बात की सम्भावना न होती कि सब लोग एक ही समुदाय (अधर्मी) हो जाएँगे, तो जो लोग रहमान के साथ कुफ़्र करते है उनके लिए हम उनके घरों की छतें चाँदी की कर देते है और सीढ़ियाँ भी जिनपर वे चढ़ते।

English Sahih:

And if it were not that the people would become one community [of disbelievers], We would have made for those who disbelieve in the Most Merciful – for their houses – ceilings and stairways of silver upon which to mount. ([43] Az-Zukhruf : 33)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और अगर ये बात न होती कि (आख़िर) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएँगे तो हम उनके लिए जो ख़ुदा से इन्कार करते हैं उनके घरों की छतें और वही सीढ़ियाँ जिन पर वह चढ़ते हैं (उतरते हैं)