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وَاَمَّا الَّذِيْنَ كَفَرُوْاۗ اَفَلَمْ تَكُنْ اٰيٰتِيْ تُتْلٰى عَلَيْكُمْ فَاسْتَكْبَرْتُمْ وَكُنْتُمْ قَوْمًا مُّجْرِمِيْنَ  ( الجاثية: ٣١ )

But as for
وَأَمَّا
और रहे
those who
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
disbelieved
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
"Then were not
أَفَلَمْ
क्या फिर ना
"Then were not
تَكُنْ
थीं
My Verses
ءَايَٰتِى
आयात मेरी
recited
تُتْلَىٰ
वो पढ़ी जातीं
to you
عَلَيْكُمْ
तुम पर
but you were proud
فَٱسْتَكْبَرْتُمْ
तो तकब्बुर किया तुमने
and you became
وَكُنتُمْ
और थे तुम
a people
قَوْمًا
क़ौम
criminals?"
مُّجْرِمِينَ
मुजरिम

Waamma allatheena kafaroo afalam takun ayatee tutla 'alaykum faistakbartum wakuntum qawman mujrimeena (al-Jāthiyah 45:31)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया (उनसे कहा जाएगा,) 'क्या तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर नहीं सुनाई जाती थी? किन्तु तुमने घमंड किया और तुम थे ही अपराधी लोग

English Sahih:

But as for those who disbelieved, [it will be said], "Were not Our verses recited to you, but you were arrogant and became a criminal people? ([45] Al-Jathiyah : 31)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जिन्होंने कुफ्र एख्तेयार किया (उनसे कहा जाएगा) तो क्या तुम्हारे सामने हमारी आयतें नहीं पढ़ी जाती थीं (ज़रूर) तो तुमने तकब्बुर किया और तुम लोग तो गुनेहगार हो गए