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اِنِّيْٓ اُرِيْدُ اَنْ تَبُوْۤاَ بِاِثْمِيْ وَاِثْمِكَ فَتَكُوْنَ مِنْ اَصْحٰبِ النَّارِۚ وَذٰلِكَ جَزَاۤؤُا الظّٰلِمِيْنَۚ   ( المائدة: ٢٩ )

"Indeed I
إِنِّىٓ
बेशक मैं
wish
أُرِيدُ
मैं चाहता हूँ
that
أَن
कि
you be laden
تَبُوٓأَ
तू पलटे
with my sin
بِإِثْمِى
साथ मेरे गुनाह के
and your sin
وَإِثْمِكَ
और अपने गुनाह के
so you will be
فَتَكُونَ
फिर तू हो जाएगा
among
مِنْ
साथियों में से
(the) companions
أَصْحَٰبِ
साथियों में से
(of) the Fire
ٱلنَّارِۚ
आग के
and that
وَذَٰلِكَ
और ये
(is the) recompense
جَزَٰٓؤُا۟
बदला है
(of) the wrong-doers"
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों का

Innee oreedu an tabooa biithmee waithmika fatakoona min ashabi alnnari wathalika jazao alththalimeena (al-Māʾidah 5:29)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

'मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से एक हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।'

English Sahih:

Indeed, I want you to obtain [thereby] my sin and your sin so you will be among the companions of the Fire. And that is the recompense of wrongdoers." ([5] Al-Ma'idah : 29)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

मैं तो ज़रूर ये चाहता हूं कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तेरे सर हो जॉए तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा है