وَمَا لَكُمْ اَلَّا تَأْكُلُوْا مِمَّا ذُكِرَ اسْمُ اللّٰهِ عَلَيْهِ وَقَدْ فَصَّلَ لَكُمْ مَّا حَرَّمَ عَلَيْكُمْ اِلَّا مَا اضْطُرِرْتُمْ اِلَيْهِ ۗوَاِنَّ كَثِيرًا لَّيُضِلُّوْنَ بِاَهْوَاۤىِٕهِمْ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۗاِنَّ رَبَّكَ هُوَ اَعْلَمُ بِالْمُعْتَدِيْنَ ( الأنعام: ١١٩ )
Wama lakum alla takuloo mimma thukira ismu Allahi 'alayhi waqad fassala lakum ma harrama 'alaykum illa ma idturirtum ilayhi wainna katheeran layudilloona biahwaihim bighayri 'ilmin inna rabbaka huwa a'lamu bialmu'tadeena (al-ʾAnʿām 6:119)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और क्या आपत्ति है कि तुम उसे न खाओ, जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया हो, बल्कि जो कुछ चीज़े उसने तुम्हारे लिए हराम कर दी है, उनको उसने विस्तारपूर्वक तुम्हे बता दिया है। यह और बात है कि उसके लिए कभी तुम्हें विवश होना पड़े। परन्तु अधिकतर लोग तो ज्ञान के बिना केवल अपनी इच्छाओं (ग़लत विचारों) के द्वारा पथभ्रष्टो करते रहते है। निस्सन्देह तुम्हारा रब मर्यादाहीन लोगों को भली-भाँति जानता है
English Sahih:
And why should you not eat of that upon which the name of Allah has been mentioned while He has explained in detail to you what He has forbidden you, excepting that to which you are compelled. And indeed do many lead [others] astray through their [own] inclinations without knowledge. Indeed, your Lord – He is most knowing of the transgressors. ([6] Al-An'am : 119)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और तुम्हें क्या हो गया है कि जिस पर ख़ुदा का नाम लिया गया हो उसमें नहीं खाते हो हालॉकि जो चीज़ें उसने तुम पर हराम कर दीं हैं वह तुमसे तफसीलन बयान कर दीं हैं मगर (हाँ) जब तुम मजबूर हो तो अलबत्ता (हराम भी खा सकते हो) और बहुतेरे तो (ख्वाहमख्वाह) अपनी नफसानी ख्वाहिशों से बे समझे बूझे (लोगों को) बहका देते हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हक़ से तजाविज़ करने वालों से ख़ूब वाक़िफ है