وَاِنِّيْ كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوْٓا اَصَابِعَهُمْ فِيْٓ اٰذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَاَصَرُّوْا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًاۚ ( نوح: ٧ )
And indeed I
وَإِنِّى
और बेशक मैं
every time
كُلَّمَا
जब कभी
I invited them
دَعَوْتُهُمْ
पुकारा मैं ने उन्हें
that You may forgive
لِتَغْفِرَ
ताकि तू बख़्श दे
them
لَهُمْ
उन्हें
they put
جَعَلُوٓا۟
उन्होंने डाल लीं
their fingers
أَصَٰبِعَهُمْ
ऊँगलियाँ अपनी
in
فِىٓ
अपने कानों में
their ears
ءَاذَانِهِمْ
अपने कानों में
and covered themselves
وَٱسْتَغْشَوْا۟
और उन्होंने ढाँप लिए
(with) their garments
ثِيَابَهُمْ
कपड़े अपने
and persisted
وَأَصَرُّوا۟
और उन्होंने इसरार किया
and were arrogant
وَٱسْتَكْبَرُوا۟
और उन्होंने तकब्बुर किया
(with) pride
ٱسْتِكْبَارًا
तकब्बुर करना
Wainnee kullama da'awtuhum litaghfira lahum ja'aloo asabi'ahum fee athanihim waistaghshaw thiyabahum waasarroo waistakbaroo istikbaran (Nūḥ 71:7)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
'और जब भी मैंने उन्हें बुलाया, ताकि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ दे लीं और अपने कपड़ो से स्वयं को ढाँक लिया और अपनी हठ पर अड़ गए और बड़ा ही घमंड किया
English Sahih:
And indeed, every time I invited them that You may forgive them, they put their fingers in their ears, covered themselves with their garments, persisted, and were arrogant with [great] arrogance. ([71] Nuh : 7)