وَاَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلّٰهِ ۗ فَاِنْ اُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِۚ وَلَا تَحْلِقُوْا رُءُوْسَكُمْ حَتّٰى يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهٗ ۗ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَّرِيْضًا اَوْ بِهٖٓ اَذًى مِّنْ رَّأْسِهٖ فَفِدْيَةٌ مِّنْ صِيَامٍ اَوْ صَدَقَةٍ اَوْ نُسُكٍ ۚ فَاِذَآ اَمِنْتُمْ ۗ فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ اِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِۚ فَمَنْ لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلٰثَةِ اَيَّامٍ فِى الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ اِذَا رَجَعْتُمْ ۗ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ۗذٰلِكَ لِمَنْ لَّمْ يَكُنْ اَهْلُهٗ حَاضِرِى الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۗ وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ شَدِيْدُ الْعِقَابِ ࣖ ( البقرة: ١٩٦ )
Waatimmoo alhajja waal'umrata lillahi fain ohsirtum fama istaysara mina alhadyi wala tahliqoo ruoosakum hatta yablugha alhadyu mahillahu faman kana minkum mareedan aw bihi athan min rasihi fafidyatun min siyamin aw sadaqatin aw nusukin faitha amintum faman tamatta'a bial'umrati ila alhajji fama istaysara mina alhadyi faman lam yajid fasiyamu thalathati ayyamin fee alhajji wasab'atin itha raja'tum tilka 'asharatun kamilatun thalika liman lam yakun ahluhu hadiree almasjidi alharami waittaqoo Allaha wai'lamoo anna Allaha shadeedu al'iqabi (al-Baq̈arah 2:196)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और हज और उमरा जो कि अल्लाह के लिए है, पूरे करो। फिर यदि तुम घिर जाओ, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश कर दो। और अपने सिर न मूड़ो जब तक कि क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुँच जाए, किन्तु जो व्यक्ति तुममें बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो, तो रोज़े या सदक़ा या क़रबानी के रूप में फ़िद्याी देना होगा। फिर जब तुम पर से ख़तरा टल जाए, तो जो व्यक्ति हज तक उमरा से लाभान्वित हो, जो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश करे, और जिसको उपलब्ध न हो तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जब तुम वापस हो, ये पूरे दस हुए। यह उसके लिए है जिसके बाल-बच्चे मस्जिदे हराम के निकट न रहते हों। अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है
English Sahih:
And complete the Hajj and Umrah for Allah. But if you are prevented, then [offer] what can be obtained with ease of sacrificial animals. And do not shave your heads until the sacrificial animal has reached its place of slaughter. And whoever among you is ill or has an ailment of the head [making shaving necessary must offer] a ransom of fasting [three days] or charity or sacrifice. And when you are secure, then whoever performs Umrah [during the Hajj months] followed by Hajj [offers] what can be obtained with ease of sacrificial animals. And whoever cannot find [or afford such an animal] – then a fast of three days during Hajj and of seven when you have returned [home]. Those are ten complete [days]. This is for those whose family is not in the area of al-Masjid al-Haram. And fear Allah and know that Allah is severe in penalty. ([2] Al-Baqarah : 196)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और सिर्फ ख़ुदा ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी क़ुरबानी मयस्सर आये (कर दो) और जब तक कुरबानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुँडवाओ फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो (सर मुँडवाने का बदला) रोजे या खैरात या कुरबानी है पस जब मुतमइन रहों तो जो शख्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी और जिस से कुरबानी ना मुमकिन हो तो तीन रोजे ज़माना ए हज में (रखने होंगे) और सात रोजे ज़ब तुम वापस आओ ये पूरा दहाई है ये हुक्म उस शख्स के वास्ते है जिस के लड़के बाले मस्ज़िदुल हराम (मक्का) के बाशिन्दे न हो और ख़ुदा से डरो और समझ लो कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है