وَعَلَّمْنٰهُ صَنْعَةَ لَبُوْسٍ لَّكُمْ لِتُحْصِنَكُمْ مِّنْۢ بَأْسِكُمْۚ فَهَلْ اَنْتُمْ شَاكِرُوْنَ ( الأنبياء: ٨٠ )
And We taught him
وَعَلَّمْنَٰهُ
और सिखाया हमने उसे
(the) making
صَنْعَةَ
बनाना
(of) coats of armor
لَبُوسٍ
लिबास का
for you
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
to protect you
لِتُحْصِنَكُم
ताकि वो बचाए तुम्हें
from
مِّنۢ
तुम्हारी जंग से
your battle
بَأْسِكُمْۖ
तुम्हारी जंग से
Then will
فَهَلْ
तो क्या
you
أَنتُمْ
तुम
(be) grateful?
شَٰكِرُونَ
शुक्र गुज़ार हो
Wa'allamnahu san'ata laboosin lakum lituhsinakum min basikum fahal antum shakiroona (al-ʾAnbiyāʾ 21:80)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और हमने उसे तुम्हारे लिए एक परिधान (बनाने) की शिल्प-कला भी सिखाई थी, ताकि युद्ध में वह तुम्हारी रक्षा करे। फिर क्या तुम आभार मानते हो?
English Sahih:
And We taught him the fashioning of coats of armor to protect you from your [enemy in] battle. So will you then be grateful? ([21] Al-Anbya : 80)