وَالْبُدْنَ جَعَلْنٰهَا لَكُمْ مِّنْ شَعَاۤىِٕرِ اللّٰهِ لَكُمْ فِيْهَا خَيْرٌۖ فَاذْكُرُوا اسْمَ اللّٰهِ عَلَيْهَا صَوَاۤفَّۚ فَاِذَا وَجَبَتْ جُنُوْبُهَا فَكُلُوْا مِنْهَا وَاَطْعِمُوا الْقَانِعَ وَالْمُعْتَرَّۗ كَذٰلِكَ سَخَّرْنٰهَا لَكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ( الحج: ٣٦ )
Waalbudna ja'alnaha lakum min sha'airi Allahi lakum feeha khayrun faothkuroo isma Allahi 'alayha sawaffa faitha wajabat junoobuha fakuloo minha waat'imoo alqani'a waalmu'tarra kathalika sakhkharnaha lakum la'allakum tashkuroona (al-Ḥajj 22:36)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
(क़ुरबानी के) ऊँटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में से बनाया है। तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः खड़ा करके उनपर अल्लाह का नाम लो। फिर जब उनके पहलू भूमि से आ लगें तो उनमें से स्वयं भी खाओ औऱ संतोष से बैठनेवालों को भी खिलाओ और माँगनेवालों को भी। ऐसी ही करो। हमने उनको तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ
English Sahih:
And the camels and cattle We have appointed for you as among the symbols [i.e., rites] of Allah; for you therein is good. So mention the name of Allah upon them when lined up [for sacrifice]; and when they are [lifeless] on their sides, then eat from them and feed the needy [who does not seek aid] and the beggar. Thus have We subjected them to you that you may be grateful. ([22] Al-Hajj : 36)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और कुरबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खुदा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर ज़िबाह करो और उस वक्त उन पर खुदा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू काटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खुद भी खाओ और केनाअत पेशा फक़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो