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فَقَرَاَهٗ عَلَيْهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ مُؤْمِنِيْنَ ۗ   ( الشعراء: ١٩٩ )

And he (had) recited it
فَقَرَأَهُۥ
फिर वो पढ़ता उसे
to them
عَلَيْهِم
उन पर
not
مَّا
ना
they would
كَانُوا۟
होते वो
in it
بِهِۦ
उस पर
(be) believers
مُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले

Faqaraahu 'alayhim ma kanoo bihi mumineena (aš-Šuʿarāʾ 26:199)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इसे माननेवाले न होते

English Sahih:

And he had recited it to them [perfectly], they would [still] not have been believers in it. ([26] Ash-Shu'ara : 199)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और वह उन अरबो के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर ईमान लाने वाले न थे