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وَاِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُّنِيْبِيْنَ اِلَيْهِ ثُمَّ اِذَآ اَذَاقَهُمْ مِّنْهُ رَحْمَةً اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُوْنَۙ  ( الروم: ٣٣ )

And when
وَإِذَا
और जब
touches
مَسَّ
पहुँचती है
men
ٱلنَّاسَ
लोगों को
hardship
ضُرٌّ
कोई तक्लीफ़
they call
دَعَوْا۟
वो पुकारते हैं
their Lord
رَبَّهُم
अपने रब को
turning
مُّنِيبِينَ
रुजूअ करने वाले बन कर
to Him
إِلَيْهِ
तरफ़ उसके
Then
ثُمَّ
फिर
when
إِذَآ
जब
He causes them to taste
أَذَاقَهُم
वो चखाता है उन्हें
from Him
مِّنْهُ
अपनी तरफ़ से
Mercy
رَحْمَةً
रहमत
behold!
إِذَا
यकायक
A party
فَرِيقٌ
एक गिरोह (के लोग)
of them
مِّنْهُم
उनमें से
with their Lord
بِرَبِّهِمْ
अपने रब के साथ
associate partners
يُشْرِكُونَ
वो शरीक ठहराते हैं

Waitha massa alnnasa durrun da'aw rabbahum muneebeena ilayhi thumma itha athaqahum minhu rahmatan itha fareequn minhum birabbihim yushrikoona (ar-Rūm 30:33)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और जब लोगों को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वे अपने रब को, उसकी ओर रुजू (प्रवृत) होकर पुकारते है। फिर जब वह उन्हें अपनी दयालुता का रसास्वादन करा देता है, तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोग अपने रब का साझी ठहराने लगे;

English Sahih:

And when adversity touches the people, they call upon their Lord, turning in repentance to Him. Then when He lets them taste mercy from Him, at once a party of them associate others with their Lord, ([30] Ar-Rum : 33)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गयी तो उसी की तरफ रुजू होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं