اِنَّمَا جَزٰۤؤُا الَّذِيْنَ يُحَارِبُوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَيَسْعَوْنَ فِى الْاَرْضِ فَسَادًا اَنْ يُّقَتَّلُوْٓا اَوْ يُصَلَّبُوْٓا اَوْ تُقَطَّعَ اَيْدِيْهِمْ وَاَرْجُلُهُمْ مِّنْ خِلَافٍ اَوْ يُنْفَوْا مِنَ الْاَرْضِۗ ذٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِى الدُّنْيَا وَلَهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيْمٌ ( المائدة: ٣٣ )
Innama jazao allatheena yuhariboona Allaha warasoolahu wayas'awna fee alardi fasadan an yuqattaloo aw yusallaboo aw tuqatta'a aydeehim waarjuluhum min khilafin aw yunfaw mina alardi thalika lahum khizyun fee alddunya walahum fee alakhirati 'athabun 'atheemun (al-Māʾidah 5:33)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है
English Sahih:
Indeed, the penalty for those who wage war against Allah and His Messenger and strive upon earth [to cause] corruption is none but that they be killed or crucified or that their hands and feet be cut off from opposite sides or that they be exiled from the land. That is for them a disgrace in this world; and for them in the Hereafter is a great punishment, ([5] Al-Ma'idah : 33)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएं या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएं या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुई और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है